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ता ह॒ त्यद्व॒र्तिर्यदर॑ध्रमुग्रे॒त्था धिय॑ ऊहथुः॒ शश्व॒दश्वैः॑। मनो॑जवेभिरिषि॒रैः श॒यध्यै॒ परि॒ व्यथि॑र्दा॒शुषो॒ मर्त्य॑स्य ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā ha tyad vartir yad aradhram ugretthā dhiya ūhathuḥ śaśvad aśvaiḥ | manojavebhir iṣiraiḥ śayadhyai pari vyathir dāśuṣo martyasya ||

पद पाठ

ता। ह॒। त्यत्। व॒र्तिः। यत्। अर॑ध्रम्। उ॒ग्रा॒। इ॒त्था। धियः॑। ऊ॒ह॒थुः॒। शश्व॑त्। अश्वैः॑। मनः॑ऽजवेभिः। इ॒षि॒रैः। श॒यध्यै॑। परि॑। व्यथिः॑। दा॒शुषः॑। मर्त्य॑स्य ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:62» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (यत्) जो (उग्रा) तेजस्वी वायु और बिजुली (अश्वैः) महान् वेगादि गुणों से वा (इषिरैः) प्राप्त (मनोजवेभिः) मनोवद्वेगवानों से (दाशुषः) दानशील (मर्त्यस्य) मनुष्य के (त्यत्) उस (वर्तिः) मार्ग को तथा (अरध्रम्) असमृद्ध व्यवहार और (धियः) बुद्धि वा कर्मों को (शश्वत्) निरन्तर (ऊहथुः) चलाते हैं वा (शयध्यै) सोने को (व्यथिः) व्यथा को (ह) निश्चय से (परि) पहुँचाते हैं (ता) उनको (इत्था) इस प्रकार के वर्त्तमान जानकर तुम अच्छे प्रकार प्रयुक्त करो अर्थात् कलायन्त्रों में जोड़ो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जब तुम वायु और बिजुली के गुणों को जानोगे, तभी पूर्ण ऐश्वर्य को पाओगे ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशौ स्त इत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यदुग्रा वायुविद्युता अश्वैरिषिरैर्मनोजवेभिर्दाशुषो मर्त्यस्य त्यद्वर्त्तिररध्रं धियश्च शश्वदूहथुः शयध्यै व्यथिर्ह पर्यूहथुस्तेत्था वर्त्तमानौ विज्ञाय यूयं सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (ह) किल (त्यत्) (वर्त्तिः) मार्गम् (यत्) यौ (अरध्रम्) असमृद्धव्यवहारम् (उग्रा) तेजस्विनौ (इत्था) अनेन हेतुना (धियः) प्रज्ञाः कर्माणि वा (ऊहथुः) वहथः। अत्र पुरुषव्यत्ययः (शश्वत्) निरन्तरम् (अश्वैः) महद्भिर्वेगादिगुणैः (मनोजवेभिः) मनोवद्वेगवद्भिः (इषिरैः) प्राप्तैः (शयध्यै) शयितुम् (परि) सर्वतः (व्यथिः) व्यथाम् (दाशुषः) दानशीलस्य (मर्त्यस्य) मनुष्यस्य ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यदा यूयं वायुविद्युद्गुणान् विज्ञास्यथ तदैव पूर्णमैश्वर्यं प्रास्यथ ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जेव्हा तुम्ही वायू व विद्युतच्या गुणांना जाणाल तेव्हा पूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त कराल. ॥ ३ ॥